और विष जेते तेते प्राण के हरैय्या होत, बंसी के बजे ते कढो जात न कहर है,
सुनते ही एक संग रोम रोम रंग जात, बढ़े झूम झाम कढ़े बेकली लहर है,
गावे कवि लाल तोसे हाथ जोड़ पूछती हूँ, साँची कहि दीजै जो मो पै महर है,
बांस में कि बेध में ओठ में कि फूंक में, अँगुरी की दाब में कि धुनि में जहर हैं,
सुनते ही एक संग रोम रोम रंग जात, बढ़े झूम झाम कढ़े बेकली लहर है,
गावे कवि लाल तोसे हाथ जोड़ पूछती हूँ, साँची कहि दीजै जो मो पै महर है,
बांस में कि बेध में ओठ में कि फूंक में, अँगुरी की दाब में कि धुनि में जहर हैं,
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