मौलि बाल इंदु वक्र चक्रि भुजंग सिर, सुर तटनी की छटा लट अभिराम हे,
भव्य भव भंग कर भूषित विभूत चारु, संग नंग प्रेत भूत भावन नमामहे,
सूरजप्रसाद सुख शान्ति के विटप-कल्प,अज अनबध्य आदि अखिल अकामहे,
हर त्रय सूल त्रिशूल कर कंज मंजु, तूर ग्यान गम्य ओम त्रयम्बक यजामहे,
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