Friday, March 4, 2011

मुरलिया हरि की मधुबन में धूम मचाई,
वृन्दावन में वंशी बाजी तीन भुवन धुनि छाई,
लै वीणा  नारद  जी  दौडे  शिव  समाधि  बिसराई,--मुरलिया
जैसे तैसे उल्टे सूधे गृह कारज निबटाई,
उल्टे   करि    श्रंगार   गुजरिया  वंशीवट  को  धाई,--मुरलिया
खीर में नोन दाल में शक्कर मक्खन में मिर्चाई,
गऊ  को  साग  ससुर  को भूसी  ऐसी  मति बौराई,--मुरलिया
पग में पहुँची कर में पायल कान बुलाक लगाई,
नयन महावर पग अंजन  टिकुली  कपोल  चिपकाई,--मुरलिया
जो शंकर जी कामदेव को छन में दिये जलाई,
वही   रास  दर्शन  हित  दौड़े   गोपी   वेश   बनाई,  --मुरलिया
लखि बोले घनश्याम प्रिया से को यह कहाँ से आई,
कहैं  प्रिया  आई  त्रिलोचना  गिरि  कैलाश  बिहाई, --मुरलिया
आयो मदन गर्व करि मन में हरि पर करौ चढ़ाई,
मोहित  मूर्छित स्वयं  मदन मोहन उपाधि  हरि पाई,--मुरलिया
'नारायण ' प्रभु नर लीला भव सिन्धु सेतु है भाई,
गावत,सुनत,गुनत,प्रभु गुन गन सहजहि मिलै कन्हाई,--मुरलिया   

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