मुरलिया हरि की मधुबन में धूम मचाई,
वृन्दावन में वंशी बाजी तीन भुवन धुनि छाई,
लै वीणा नारद जी दौडे शिव समाधि बिसराई,--मुरलिया
जैसे तैसे उल्टे सूधे गृह कारज निबटाई,
उल्टे करि श्रंगार गुजरिया वंशीवट को धाई,--मुरलिया
खीर में नोन दाल में शक्कर मक्खन में मिर्चाई,
गऊ को साग ससुर को भूसी ऐसी मति बौराई,--मुरलिया
पग में पहुँची कर में पायल कान बुलाक लगाई,
नयन महावर पग अंजन टिकुली कपोल चिपकाई,--मुरलिया
जो शंकर जी कामदेव को छन में दिये जलाई,
वही रास दर्शन हित दौड़े गोपी वेश बनाई, --मुरलिया
लखि बोले घनश्याम प्रिया से को यह कहाँ से आई,
कहैं प्रिया आई त्रिलोचना गिरि कैलाश बिहाई, --मुरलिया
आयो मदन गर्व करि मन में हरि पर करौ चढ़ाई,
मोहित मूर्छित स्वयं मदन मोहन उपाधि हरि पाई,--मुरलिया
'नारायण ' प्रभु नर लीला भव सिन्धु सेतु है भाई,
गावत,सुनत,गुनत,प्रभु गुन गन सहजहि मिलै कन्हाई,--मुरलिया
No comments:
Post a Comment