Tuesday, March 8, 2011

डिमिकि-डिमिकि बाजि डमरू रहा है जहा पै,भूत औ प्रेत शोर चहुधा मचा रहे,
बैल  पर  सवार  अंग भस्म रमाये, संग योगिनी निहंग भंग छाने छवि छा रहे,
सापन  के  माल  गले  कुंडल  है  सापन के, सापन के साज से सबको डरा रहे,
पहुँची बरात जब द्वार पर हिमांचल के,कान पर पडी है तान त्रयम्बकं यजामहे,

No comments:

Post a Comment