बिन काज आज महराज लाज गई मेरी,दुःख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी,
दुशासन वंश कुठार महा दुःख दाई,कर पकरत मेरो चीर लाज नहि आई,
अब भयो धर्म को नाश पाप रह्यो छाई,लखि अधम सभा की ओर नारि बिलखाई,
शकुनी दुर्योधन करण खड़े खल घेरी,दुःख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी,
तुम दीनन की सुधि लेत देवकीनंदन,महिमा अनन्त भगवंत भक्त भय भंजन,
तुम कियो सिया दुःख दूर शम्भुधनु खंडन, अति आरतिहरन गोपाल मुनिन मनरंजन,
करुनानिधान भगवान करी क्यों देरी,दुःख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी,
बैठे जहाँ राज समाज नीति सब खोई,नहिं कहत धर्म की बात सभा में कोई,
पाँचो पति बैठे मौन कौन गति होई,ले नंदनंदन को नाम द्रौपदी रोई,
करि करि विलाप संताप सभा में हेरी,दुःख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी,
तुम सुनि गजेन्द्र की टेर विश्व उरवासी,ग्रह मारि छुड़ाई बंदि काटि पग फाँसी,
मैं जपों तिहारो नाम द्वारिका वासी,अब काहे राज समाज करावत हाँसी,
अब कृपा करो यदुनाथ जानि चित चेरी, दुःख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी,
तुम पति राखी प्रहलाद दीन दुःख टारे,भये खम्भ फार नरसिंह असुर संहारे,
ब्रज खेलत केशी आदि बकासुर मारे,मथुरा मुष्टिक चाणूर कंस मद गारे,
तुम मात-पिता की जाय छुड़ाई बेरी, दुःख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी,
ले भक्तन हित अवतार कन्हाई तुमने,यमलार्जुन की जड़योनि छुटाई तुमने,
जल बरसत प्रभुता अगम दिखाई तुमने,नख पर गिरि धरि ब्रज लियो बचाई तुमने,
प्रभु अब बिलम्ब क्यों करी हमारी बेरी, दुःख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी,
सुन दीनबन्धु भगवान् भक्त हितकारी,हरि भये चीर में प्रगट हरयो दुःख भारी,
खैंचत हारयो मति मंद बीर बलकारी,रखि लई दीन की लाज आप बनवारी,
हरषत बरषत सुर सुमन बजावत भेरी, दुःख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी,
क्या करी द्वारिकानाथ मनोहर माया,अम्बर का लगा पहाड़ पार नहिं पाया,
तिहुँ लोक चतुरदस भुवन चीर दर्शाया,बंदित गणेश प्रसाद कृष्ण गुण गाया,
दीनन की दीनानाथ विपति निरबेरी, दुःख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी,
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