तुमसे न दूजा कोई मनुज का साथी सगा,दुःख में प्रशांति देनेवाली सुखखान हो,
प्रीत उपजाने में हो रम्भा की स्वरुप तुम,क्षमा करने में प्रिये अवनि सामान हो,
भोजन कराते समय माता सी मधुरमयी,मानने को आज्ञा दासी चतुर सुजान हो,
अर्थ धर्म काम मोक्ष मिलते तुम्ही से 'रमा', देने में सलाह मंत्री गुणवान हो,
प्रीत उपजाने में हो रम्भा की स्वरुप तुम,क्षमा करने में प्रिये अवनि सामान हो,
भोजन कराते समय माता सी मधुरमयी,मानने को आज्ञा दासी चतुर सुजान हो,
अर्थ धर्म काम मोक्ष मिलते तुम्ही से 'रमा', देने में सलाह मंत्री गुणवान हो,