Monday, February 28, 2011

तुमसे न दूजा कोई मनुज का साथी सगा,दुःख में प्रशांति देनेवाली सुखखान हो,
प्रीत उपजाने में हो रम्भा की स्वरुप तुम,क्षमा करने में प्रिये अवनि सामान हो,
भोजन कराते समय माता सी मधुरमयी,मानने को आज्ञा दासी चतुर सुजान हो,
अर्थ  धर्म  काम  मोक्ष  मिलते  तुम्ही  से  'रमा', देने में सलाह मंत्री गुणवान हो,

Sunday, February 27, 2011

दूत जम आगे कहै बिकल मही के हाल, गजब गुजारे देत लाल हुलसी के है,
तीखी रामबान सो रामायण बनाय मंजु, गरब नसाये सबै कलि कलुषी के है,
भारे अघवारे ते सिधारे सुर धाम सारे, गाय के चरित्र  अवधेश   सुयशी के है,
दोष दुःख टारे जात पातक बिदारे जात,भक्त उर धारे जात तारे तुलसी के है,
कैसे राम नाम को प्रभाव जग होतो ख्याति, कैसे गाय गाय लोग भक्ति बरसावते,
कैसे भाव भाषा भरें भावुक ललित छंद, देखि कवि वृन्द काव्य आनंद उठावते,
कठिन कराल  काल  चक्र  के  चपेटन  सों, कैसे अवधेश   कलि कलुष नसावते,
कैसे भवसागर  सो  पार  नर होते  जो, राम को चरित  चारु  तुलसी न बनावते,  

Saturday, February 26, 2011

ताये देति तीनो ताप प्रबल प्रचंड घोर, काम  क्रोध लोभ मोह मान मद ढाये देति,
तूल के समान पाप पुन्जन जलाये सद्य, अधम  उधारि कलि कलुष नसाये देति,
छाये  देति परम  पुनीत अवधेश  भक्ति, जगत  जनों में सदाचार बगराये देति,
गाई रामगाथा जो बनाई तुलसी  ने मंजु,मानो शब्द शब्द सो पियूष बरसाये देति,  

Sunday, February 20, 2011

गज निरखेउ फहरानि बसन की,
लग्यो  ललकि  मुख  कमल  निहारन, भूलि  गई  सुध  ग्राह  ग्रसन  की,
बनमाला  हलकत  छवि   थलकत,  दामिनि   सी   दुति  मंद  हसन  की,
बाहन   छोडि   उबाहने   पायन,  सुधि   न   रही   कटि  फेंट  कसन  की,
मन  रथ  पर  आवत  दरसावत,  भुज  भूषित  मानों  सिर  परसन  की,
सो छवि कहि न सकत कबि कोविद,जहँ न जात मति सहस रसन की,
सूर  स्याम  गज  छीनि  ग्राह  ते,  तहँ  पठयो  जहँ  डर  न  खसन  की, 

Saturday, February 19, 2011

ग्राह  गहे  गज  को  अगाधे  जल  लिये  जात, त्राहि त्राहि भाषत  भो भूरि भरे डरते,
 
धाय कै गोविन्द आय फंद ते निफंद कीन्हों,दीन्हों वाह बारनै सो काढि लीन्हो सरते,
 
चन्द्रिका  प्रसाद जू बिचार करै देव सब, देख्यो  हम आवत  ना भूमि औ अधरते,
 
वारि ते मुरारि  कैधौ  कढे ग्राह आनन् ते, कंज ते निकरि कैधौ आये  करी  कर  ते,  

Wednesday, February 16, 2011

सुन गज भीर गहयौ चीर कमला को तजि, ह्वै हरि अधीर पीर उमगि अथाह में,
कहैं  रत्नाकर  चपल  चक्र  वाहि  चलयो, वक्र  नक्र निग्रह के अमित उछाह में,
पक्षी  पति  पवन  चंचला  सो चंचल, चित्तहू  सो  चौ गुनो चपलि चलि राह में,
बारन  उबारि  दशा  दारुन  बिलोक  तासु, हुचकन लगे  आप  करुना प्रवाह में,
सुंड गहि आतुर उबारि धरनी पै धारि,बिबस बिसार काज सुर के समाज को,
कहै  रत्नाकर  निहार  करुना  की कोर, बचन  उचार जो हरैया दुःख साज को,
अम्ब  पूर दृगन बिलम्ब अपनोई लेख, देख देख  दीह  छत दंतन समाज को,
पीत  पट लै लै  कै अंगौछत शरीर को, कंजनि ते पोछ्त भुसुंडि गजराज को,
कूल तटनी के नाग वरि   ब्रज वारि केल हेतु, जल पैठ्यो  दर्प भुज बल भारी के,
धायो नक्र क्रुद्ध युद्ध अब्द बहु बीते भीते,साथी भयो पाथी हरि रिपु अधिकारी के,
बिबस  अनाथ  ह्वै  पुकारत  अनाथ  नाथ, सूरज  प्रसाद  ध्यान  मगन  मुरारी  के,
दृग  पट  झूली  झट  पीत  पट  रूप  छटा, भट  तट  झूल्यो प्रेम  नट अवतारी के,

Monday, February 14, 2011

जटित    नक्षत्र   नव  नगसर  पेंच  बीच,  पैची  मनिमाल  मुकतावलि  माला  बोर की,

भज   पजनेश  पट  पहर   जरी   के   कटि, फेंट  फहरान    छहरान  छिति  छोर  की,

कोटिन  प्रभाकर  ते  अधिक  प्रकाश  पुंज, धावत  धरा  पे  दिव्य   दुति दुहूँ ओर की,

तीन लोक झांकी ऐसी दूसरी न झांकी,जैसी झांकी हम झांकी बांकी युगलकिशोर की,
सन्तत  सुपास  होत  विघन  बिनास  होत, अबिलम्ब  नाश  होत सकल  कलेश को,
 
बुद्धि को विकास होत प्रतिभा प्रकाश होत,ऋद्धि सिद्धि वास होत संकट न लेश को,
 
अवधेश  अद्नभुत  अभूत  युक्ति  भास्  होत, ह्रास  अविचार  होत  तेज  दिवसेश  को,
 
बिबिध  बिलास  होत  शत्रु  को  न  त्रास  होत, बंदन  करत  गौरि नंदन गणेश को,

Saturday, February 12, 2011

वेदन  उधारि  भूमि  भार  पीठि  धारि  धरा, दसन  उबारि  हिरणकशिपु   को मारयो है,
बलि  छलि  लैके  क्षिति  क्षात्री बिनु  कै के, रण दस सिर जै कै हलधर बपु धारयो है,
करुणा बिचार यझ  विधिहि निवारि,फेरि कलि मे कलंकी ह्वै कुल म्लेच्छन संहारयो है,
नन्द    के  कुमार  तुम्हे  नमो  बार  बार, ऐसे  दस  अवतार  अवतारी  जग  तारयो है,

Friday, February 11, 2011

हे   हो  ब्रजराज   कोऊ   वेषधारी  आज, पुत्र    को   जनम  सुनि  आयो  तेरे  भौन  है,
मोती  मणि  माणिक  पट  कंचन  न  रत्न लेत, हय  गय भूमि  ग्रास लेत हमसौं न है,
नगर  अहोटे  नाहि   भूमि   ब्रज   लोटे, एक  अलख  ही   उचारै  और  निज  मौन  है,
बालक के पावं लै जटान सो छुवाय नाचे,योगी तीन आँख को कहाँ से आयो कौन है,
मूस   पर   साप   राखै, साप   पर   मोर राखै, बैल पर सिंह राखै, ताकी कहाँ भीति है,
पूत का भूत राखै, भूत का विभूति राखै,छ: मुख का गजमुख राखै,यहै बड़ी रीति है,
काम  का  बाम  राखै, आग  पै  पानी राखै, विष  पर अमृत राखै, यहै बड़ी जीति है,
देवीदास    देखौ,  शंकर    की    सावधानी,  सबै     बात     राखै,   खूबै    राजनीति   है,
मम   पख   सर   पर नटवर वर तन, बरनत बनत न जनमन बस भल,
समन सकल जर  समरथ सब  थल, बसत  भगत मन नमन जनम मन,
मदन जनक मद मथन खलन कर,करत भजन जन नसत जगत भल,
सब थल सब पल सरसत सत फल, नगधर रमन रमत जब मन थल,
हर   हर   जपत   रटत   रसनन   रह, करनन   कथन   धरत   रह   भर भर,
धनकर   धरम   अधम   करमन   बच, पग सन अटन करत रह दर दर,
अटक न हटक चपल मन बस कर,भटक न उदर भरन कह घर घर,
सकल   भरम   तज   भजन   करत रह, दरद न रहत कहत नर हर हर,
अमर बनन कर जतन करत सब, पवन भखत एक तपत अनल जर,
भवन रहत एक करत असन पय, फलन चखत बन बसत करम कर,
नखन जटन धर यजन करत जन,थकत पचत सब मरत जनम भर,
जतन सकल तज हर न भजत कस, दरद न रहत कहत नर हर हर,
सर पर सरप   जटन   लटकत लट, फफकत रहत फनन लप लप कर,
टपकत   जहर   गरल   लटपत    जब, सरकत    इत   उत   उरग   उदजधर,
समटत चपकत जघन नगन तर,मगन लखत सब अलख चखन भर,
हसत   नचत   पग   परत   अमर   गन, दरद न   रहत कहत नर हर हर,

दरसन   करत   नसत   अघ   अरबन, खरबन खलगन   बनत अमर मर,
करभल   करफल   नसत   हरत भल, रटत जपत मन मगन गरल धर,
जनमत मरत न धरत गरभ तन,कटत तपन त्रय जनम जनम कर,
परत  न   नरक   बचत यमगन सन, दरद न रहत कहत  नर   हर   हर,
हर हर कहत चलत जप हर हर,उठत परत सपनन लख हर हर,
थकत  बकत  बरनन   कर  हर हर, दरस  परस  हरषत रट हर हर,
कहत   रहत  हर कहत गहत  हर,  पढ़त  गनत हरदम  कह  हर हर,
हरत सकल अघ  जनम  जनम कर, दरद  न  रहत कहत नर हर हर, 
ततछन  ढरत  तनक अर्चत जल, जन गन सघन   कनक दरसत दर,
तरल नयन   घन धरत   अधर तन, करतल कररस सरल गरल धर,
अटत गहन धन रटत अजर यश,नगन सजत रग रचत अचल धर,
दहत   सकल   अघ   दरसन दरसत,दरद न रहत कहत नर हर हर,
रहत  नगन  गन चलत मगन मन, गगन गजबदन  बसत वर वट तर,
चढ़त   बरद   पर  हरत  दरद   हर, जहर  लसत  गर  भखत  गरल हर,
बघछल  बसन असन कह घर घर,जन कह धन कह मन बग छतवर,
हरत  सकल  अघ  दरसन  दरसत, दरद   न  रहत कहत  नर  हर हर,