हे हो ब्रजराज कोऊ वेषधारी आज, पुत्र को जनम सुनि आयो तेरे भौन है,
मोती मणि माणिक पट कंचन न रत्न लेत, हय गय भूमि ग्रास लेत हमसौं न है,
नगर अहोटे नाहि भूमि ब्रज लोटे, एक अलख ही उचारै और निज मौन है,
बालक के पावं लै जटान सो छुवाय नाचे,योगी तीन आँख को कहाँ से आयो कौन है,
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