Wednesday, February 16, 2011

सुन गज भीर गहयौ चीर कमला को तजि, ह्वै हरि अधीर पीर उमगि अथाह में,
कहैं  रत्नाकर  चपल  चक्र  वाहि  चलयो, वक्र  नक्र निग्रह के अमित उछाह में,
पक्षी  पति  पवन  चंचला  सो चंचल, चित्तहू  सो  चौ गुनो चपलि चलि राह में,
बारन  उबारि  दशा  दारुन  बिलोक  तासु, हुचकन लगे  आप  करुना प्रवाह में,

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