सन्तत सुपास होत विघन बिनास होत, अबिलम्ब नाश होत सकल कलेश को,
बुद्धि को विकास होत प्रतिभा प्रकाश होत,ऋद्धि सिद्धि वास होत संकट न लेश को,
अवधेश अद्नभुत अभूत युक्ति भास् होत, ह्रास अविचार होत तेज दिवसेश को,
बिबिध बिलास होत शत्रु को न त्रास होत, बंदन करत गौरि नंदन गणेश को,
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