Kavita Ghat (कविता-घट)
Friday, February 11, 2011
रहत नगन गन चलत मगन मन, गगन गजबदन बसत वर वट तर,
चढ़त बरद पर हरत दरद हर, जहर लसत गर भखत गरल हर,
बघछल बसन असन कह घर घर,जन कह धन कह मन बग छतवर,
हरत सकल अघ दरसन दरसत, दरद न रहत कहत नर हर हर,
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