Tuesday, January 25, 2011

आजु लौ जो मिले तो कहाँ,हम तो सब भाँति तिहारे कहावे,

मेरो  उलाहनो  है  कछु  नाहि, सबै  फल  आपने  भाग को पावे,

जो  हरिचंद  भई  सो  भई, अब  प्राण  चलन चाहे तासो सुनावे,

प्यारे  जू  है  जग की यह रीत,बिदा के समय सब कंठ लगावे,
रोकहि  जो  तो अमंगल  होय, प्रेम  नसे जो कहें 'पिय जाइये',

जो कहें' जाहु ' तौ प्रभुता, कछू कहें तो सनेह नसाइये,

जो हरिचंद कहें 'तुम्हरे बिन जीहे ना' तौ यह क्यों पतिआइये,

तासो पयान   समय तुम्हरे हम, का  कहें प्यारे हमे समझाइये,
इन  दुखियान  को   चैन  सपनेहु मिलेउ, तासो सदा ब्याकुल बिकल अकुलायेंगी,

प्यारे हरिचंद जू की बीती औधि जानि,प्रान चाहत चलै पै ये तो संग ना समायेंगी,

देखेहु ऐक बारहू  नैन भरि  तोहि याते, जौन जौन लोक जहिये तहा पछितायेंगी,

बिना  प्रान  प्यारे  भये  दरस  तुम्हारे  हाय, मरेहू पै आंखे ये खुली ही रह जायेंगी,
सब  रत्न  सुरो  मे  बँटे  इसलिये  मदहोश  किया मदिरा को पिला,

गज, बाज  की  कौन करे गिनती तरुराज का भी है फिजूल गिला,

बनती रमा  आपकी, छोडती क्यों, कुछ नहीं तो शंख ही देते दिला,

इस बन्दर बाँट में न्यायी प्रभू,बताओ असुरो को मिला क्या भला,
वृन्दावन बांसुरी जो बाज़ी सो बाज़ी अब,बाज़ी कहें बीते द्यौस आनंद अकथ के,

कंसै कोसती है बाज़ी,बाज़ी अश्रु मोचती है,बाज़ी सोचती है,परिणाम प्रेम पथ के,

लीनेहु गहि पान बाज़ी,बाज़ी पेटुका के छोर,बाज़ी उरझाई माल सुवा में सुनथ के,

रोकन लगी है बाज़ी,बाज़ी की पकर बांग,बाज़ी लागी लोटन अगारी जाय रथ के,

Sunday, January 23, 2011

तुम  उधौ  जाय   और   कहेउ, उनसों बिनती इतनी सी अहै,

पत्नी पति  की, पत्नी  को  पिया, अति  होत सगो जब पानि गहै,

यहि हेतु सो राधिका श्याम के बीच,तीजे को ठाम वेद कहै,

पर कान्ह तो हुइगे कूबरी के, यह राधिका कौन की  ह्वै  के रहै,

Saturday, January 22, 2011

लानत  है  उस   रीझ  पर  जो  नियामत  छाँड़   गले  बिच  बांधे  मलामत,

मियां     मत   कीजिये   वकालत   पेश   यहाँ   दरपेश   वहाँ    की  कलामत,

क्यां    ज़बां    शीरी     फकीरी    कही,  और    तो    उधौ   जले    पे    जलामत,

थूक थुवा जो हुआ सो हुआ दुआ करो रहे कूबरी कृष्ण की जोड़ी सलामत,
एक सखी मनमोहन की, मधुरी मुस्कान दिखाय दई री,

वह सांवलि सूरत चैनमयी, सबही चितई, हमहू चितइ री,

सब   सखिया अपने अपने  घर, खेलत,कूदत बाँट लई री,

मै  बपुरी  बृषभानुलली, घर  लौटत  पौरि  पहार भई री,

Thursday, January 20, 2011

खाय  चुकै  खाने , बनाय चुकै बाने सब, गाय चुकै  गाने, सरसाने  सुख सोय चुकै,

साध   चुकै  साधन,  अराध  चुकै  आधनबाँध    चुकै  व्याधन,  उपाधन  लोय  चुकै,

साधु   कवि  महाराज, राघव  अलोकिन   ते,  लोक  परलोक  दुहूँ  से  हाथ धोय चुकै,

रीझ चुके,रिझै चुकै खीझ चुके,खिझै चुकै, सीझ चुके, सिझै चुकै, होनै है सो हुई चुके,
कै  चुकेउ  भोग  संजोग  सबै, कै  चुकेउ   चंचल   चित्त चलाँकी,

तेउ नंदरामजू कै   चुकेउ संपत्ति, कै चुकेउ बात सबै मनसा की,

पीस  गये  भट रावन सो, अरु  फूटी  नहीं वह काल की चाकी,

राम के नाम से हेतु करौ, अब  तो  न रहेउ करिबो कछु बाकी,
तीरथ   जाऊ तो  जात  चलो नहि, योग को साधिबे है कठिनाई,

धर्म   करूँ   धन   पास   नहीं   अरु, ज्ञान   सुने  मन  रोके   जाई,

रीत      सबै     बिपरीत     भईमकरंद    कहें      तुमहीँ    सुखदाई,

मोरे   बनाये   कछू    न    बनी,  बनिहै     ब्रजनाथ   तुम्हारी   बनाई,
पौढ़ी  हुती  पलिका  पर  सुन्दर, सेज  संवार  सिंगार    बनाये,

लाग  गयी पल  में  पलकें, पल  लागत  ही  पल में पिय आये,

धाय  उठी   उनसे  मिलिबे कह,जागि परी पिय पास पाये,

मीरन और तो सोय  के खोवत, मैं सखि प्रीतम जागि गवाये,
आये  कान्ह द्वारे,राधे दौड़ उठ देखि आली, काहू  यह  बात कही आनंद सुधामई,

केते   दिनहू  की  तन  तपन बुझाईबे  को, प्रेम  सरसाय  प्यारे देखन तहां गई,

झूठौ   सुख  सपनेहु  करन   पायो  आली, दई  निरदई  हाय  तुरत  दगा दई,

जौं लौं भरि नैन वह मूरत निहार देखौ,तौं लौं नैन छोड़ नींद बैरन बिदा भई,

Wednesday, January 19, 2011

एक  समय   कृष्णचन्द्र   द्वारिका से भाग गयो,एक समय कंस को पछाड़ो एक छन माँ,

एक समय अर्जुन ने महाभारत युद्ध जीतो, एक समय भिल्लिन ने लूट लियो वन माँ,

एक  समय रावन ने  तीनो  लोक बस मे कीन्हे,एक समय दसो सीस कटे परे रन माँ,

मानुष   बिचारे   की  दीन  दसा   कौन  कहे, सूरज  के  तीन  पन  होत  एक  दिन  माँ,
पाय  प्रभुताई  कछु  कीजिये  भलाई  यहाँ  नाही  थिरताई  बैन  मानिये कबिन के,

यश  अपयश  रहि  जात  बीच  पुहुमी के मुलुक खजाने   कहौं साथ  गए किन के,

और महिपालन की गिनती गिनावे कौन रावन से हुइ गये त्रिलोकी बस जिनके,

चोबदार,   चाकर,   चमूपती,   चंवरदार,  मंदिर   मतंग    ये   तमासे  चार  दिन  के,
क्षौहणी अट्ठारह दल बाजे वारे रावन के, पूत भूत नाती केते,भूतन को खाय गये,

नव  लाख  गाये  ब्याये  तासो कहैं एक नन्द, ऐसे नौ नन्द उपनन्दहू हिराय गये,

श्रीपति भनत माया गिरधर गोपाल जू की, लेत   देत बारन बज़ार ऐसी लाय गये,

सौ भये तिमिर के, सहस साठ सगर के,छप्पन करोड यादव छण मा सिराय गये,
केते भये सगर सुत, यादव सुत केते भये, जातहूँ   जाने  ज्यो तरैया परभात की,

बलि, वेणु,  मान्धाता,  दधीचप्रहलाद मैं, कहाँ  लौ   कथा   कहौं   रावन  जजाति की,

तेऊ बचन पाये काल कौतुकी के हाथ,भाति भाति सेन रची,समर सूर घातकी,

चार चार  दिन  को  चबाव सब कोइ करौ, अंत  लौट  जहियो, जैसे पातुर बरात की,
दाता को महीप मान्धाता दिलीप ऐसे, जाके यश अजहू लौ दीप दीप छाये है,

बलि ऐसो  बलवान को भयो जहान बीच, रावन समान  को प्रतापी जग जायो है,

बाण की कलान मे सुजान द्रोण,पारथ से, जाके यश अजहू लौ  भारत में गाये है,

कैसे   कैसे   सूर   रचे  चतुर  बिरंचजू  ने, फिर  चकचूर  कर, धूरि  मे   मिलाये है,

Tuesday, January 18, 2011

पौढ़ी  हुती   पलिका  पर  सुन्दर, सेज   संवार   सिंगार  बनाये,

लाग   गयी  पल  में पलकें,पल  लागत ही पल में पिय आये,

धाय  उठी   उनसे  मिलिबे  कह, जागि  परी  पिय  पास पाये,

मीरन  और   तो सोय के खोवत, मैं सखि प्रीतम  जागि गवाये,
आये कान्ह द्वारे, राधे दौड़  उठ देखि आली, काहू यह बात कही आनंद सुधामई,

केते  दिनहू  की   तन   तपन    बुझाईबे  को, प्रेम   सरसाय  प्यारे  देखन   तहां गई,

झूठौ  सुख  सपनेहु  करन   पायो  आली,  दई   निरदई  हाय  तुरत  दगा दई,

जौं लौं भरि नैन वह मूरत निहार देखौ, तौं लौं नैन छोड़ नींद बैरन बिदा भई,
व्यथित  तृषा  ते  अति  आकुल मतंग भयो,करनि  समेत  गहि गैल वारि तट की,

करतै प्रवेश तटनी के गयो बीच धार, ऐचा खैची होन लगी जीत ग्राह के लपट की,

साथी  जान  पाथी  कर  कमल  उठाय कह्यो,आओ बाल कृष्ण पूजा निर्बल निपट की,

है   सुधि  तट की,  त्रास प्रतिभट की, सो दूर से बिलोकेउ फहरान पीतपट की,
छलबल  कै  थाक्यो  अनेक  गजराज   भारी, भयो  बलहीन  जब   नेकु      छुड़ा  गयो,

कहिबे  को  भयो  करुना  की  कवि  कारे  कहें, रही   नेकु  नाक  और सबही  डुबा गयो,

पंकज   से    पायन,  पयादे,  पलंग  छाडि,  पावरी   बिसारि   प्रभु   ऐसी    परि   पा  गयो,

हाथी के ह्रदय माहि आधौ हरि नाम सोय गरे जौ ना आयो गरुणेश तौ लौ गयो,
रमत   रमा   के   संग  आनंद  उमंग  भरे, अंग   पै  थहर   मतंग  अवराधे  पै,

कहै  पद्माकर    बदन  दुति  औरे  भई, बूंदे  छई   छलक   दृगन   नेह  नाधे  पै,

धाये  उठ बारन उबारन मे लाई रंज, चंचलाहू चकित हुई रही बेग साधे पै,

आवत बितुंड की पुकार मिली आधे पै,लौटत मिलेव पच्छिराज मग आधे पै,

Sunday, January 16, 2011

प्यारे की कसम सुनि कसकी करेजो माँहि, जीवन  है मेरो कान्ह काह करि आयो है,

मोंसो कहो कोटिक कछू कहो बालक सो,केते दुःख देखि देखि कैसो करि पायो है,

माखन  को  माट लैके द्वारे पे   महर बैठी, तौल तौल लेव  बीर जाको जेतो खायो है,

गोरस के कारन ग्वालिनि गोदहू पसारति हू,गारी जनि देहु,मो गरीबिनी को जायो है,
देखों  नन्दरानी   निज  कर  गहि लाइ चोर, भोरही  ते  आय  बड़ो  उधम मचावे है,

लैके  ग्वाल  बाल  संग आय  घुस जाय घर, माखन  लुटाय  दधि  माट ढरकावे है,

कवि छविनाथ झुंझुलाय उठि बोली मात,छल मे छकी है तोही ,शरम आवे है,

यौवन के जोर में    सूझत  है  तोहि  एरी, देवर  को  हाथ  गहे, कान्हर बतावे है,

Friday, January 14, 2011

प्रीत  करि नफा काहूँ पायो कहूँ सुने नाहि, छूटे सब खान पान  सुधि नाही अंग की,

कमल सो प्रीत करि भौंर सम्पुट होइ रहेउ,बाण को प्रहार सहेउ प्रीत यह कुरंग की,

कहत  नवनीत  प्रेम  प्रीत की व्यथा है दीह, बिरलो ही जानत है   राह यह कुढंग की,

प्रीत कीजै पाछै पहले रीत सीख लीजै यह, बिछुरन मीन की  अरु  मिलन पतंग की,
क्यों जरि जाय री पतंग धाय दीपक में,क्यों मणिहीन जो भुजंग प्राण त्यागैरी,

रजनी  मलीन  बिन  चंद क्यों होय भटू, स्वाती बिन चातक अधार क्यों बागैरी,

रसिकबिहारी   बिन   सुघर   सनेही   मिले,  कोटिहू    उपाय   ते   न    जीव   अनुरागैरी,

बिछुरे  नीर  मीन  क्यों   मर  जाये आली,जाने सो बियोग पीर जाके जिय लागैरी,
पूछौ  क्यों  उमंगै  सिन्धु  पूरण  मयंक देखि, पूछौ तौ कुमोदनी बिलोकि भानु क्यों लजै,

पूछौ तौ पपीहा क्यों पीवै नीर स्वाती बिन,पूछौ तौ मलिँदै क्यों चाहै चम्पकी रजै,

रसिकबिहारी  चित्त  रीत   है    अलक्ष्य   यह, पूछौ   बहु   ठौर   तौ   संका   हिये   ते  भजै,

पूछौ तौ पतिंगा क्यों जरे है धाय दीपक में, पूछौ  बारि  के बिहीन मीन जीव क्यों तजै,
आपुहि से सूली चढ़ जइबो है सहज घनो,सोई अति सहज सती को तन दाहिबो,

सीस  पे  सुमेर  धार  धाइबो  सहज  बहु, सहज  बड़ो है बहु  सातो सिन्धु थाहिबो,

सहज बड़ो है प्रीत करिबो बिचारो जिय, सहज बड़ो  है मीत दुइ दिन को चाहिबो,

रसिकबिहारी  यही  सहज  नहीं  है मीत, एक तो सदा  हो सांचे नेह को निबहिबो,
जिय  पै  जो  होय  अधिकार तो बिचार कीजै, लोक, लाज,भलो,बुरो,भले निरधारिये,

नैन, श्रौन, कर, पग,  सबै   परबस   भये, उतै   चलि  जात, इन्हे   कैसे   कै  सम्भारिये,

हरिचंद   भई   सब   भांति  सो  पराइ हम, इनहि ज्ञान कहि, कहो कैसे कै निबाहिये,

मन में बसे जो ताही दीजिये बिसार,मन आपै बसे जामै,ताहि कैसे कै बिसारिये,
प्राननि   के   प्यारे,  तन   ताप  के   हरनहारे, नन्द   के   दुलारेब्रजवारे  उमहत  है,

कहें   पद्माकर    उरूझे    उर   अंतर   में,  अंतर   चहेहू    ते    न    अंतर   चहत   है,

नैनन   बसें   है, अंग  अंग  हुलसे  है, रोम  रोमन  लसे  है, निकसे है, को  कहत है,

उद्धव वे गोविन्द मथुरा में कोई और,इहा मेरे तो गोविन्द मोहि मोहि में रहत है,
उधौ जो रहिती हम,मथुरा पुरी के बीच, कीच मे पछाड़ वाको  मुहें मुहं मारती,

मारती, बिदारती, उजाड़ देती वाके केस, श्याम  की सुहागिनी, ह्र्दय  बिचारती,

पकर  लै  जाती जो, मातु जसुदा के पास, हा हा खवाय, मार धाम में पछाडती,

मारि,मारि लातन ते,चाभि चाभि दातन ते,कूबरी को कूबरो,कलेजवा निकालती,