Kavita Ghat (कविता-घट)
Tuesday, January 18, 2011
पौढ़ी
हुती
पलिका
पर
सुन्दर
,
सेज
संवार
सिंगार
बनाये
,
लाग
गयी
पल
में
पलकें
,
पल
लागत
ही
पल
में
पिय
आये
,
धाय
उठी
उनसे
मिलिबे
कह
,
जागि
परी
पिय
पास
न
पाये
,
मीरन
और
तो
सोय
के
खोवत
,
मैं
सखि
प्रीतम
जागि
गवाये
,
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