Saturday, January 22, 2011

एक सखी मनमोहन की, मधुरी मुस्कान दिखाय दई री,

वह सांवलि सूरत चैनमयी, सबही चितई, हमहू चितइ री,

सब   सखिया अपने अपने  घर, खेलत,कूदत बाँट लई री,

मै  बपुरी  बृषभानुलली, घर  लौटत  पौरि  पहार भई री,

No comments:

Post a Comment