एक सखी मनमोहन की, मधुरी मुस्कान दिखाय दई री,
वह सांवलि सूरत चैनमयी, सबही चितई, हमहू चितइ री,
सब सखिया अपने अपने घर, खेलत,कूदत बाँट लई री,
मै बपुरी बृषभानुलली, घर लौटत पौरि पहार भई री,
वह सांवलि सूरत चैनमयी, सबही चितई, हमहू चितइ री,
सब सखिया अपने अपने घर, खेलत,कूदत बाँट लई री,
मै बपुरी बृषभानुलली, घर लौटत पौरि पहार भई री,
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