Wednesday, January 19, 2011

दाता को महीप मान्धाता दिलीप ऐसे, जाके यश अजहू लौ दीप दीप छाये है,

बलि ऐसो  बलवान को भयो जहान बीच, रावन समान  को प्रतापी जग जायो है,

बाण की कलान मे सुजान द्रोण,पारथ से, जाके यश अजहू लौ  भारत में गाये है,

कैसे   कैसे   सूर   रचे  चतुर  बिरंचजू  ने, फिर  चकचूर  कर, धूरि  मे   मिलाये है,

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