देखों नन्दरानी निज कर गहि लाइ चोर, भोरही ते आय बड़ो उधम मचावे है,
लैके ग्वाल बाल संग आय घुस जाय घर, माखन लुटाय दधि माट ढरकावे है,
कवि छविनाथ झुंझुलाय उठि बोली मात,छल मे छकी है तोही ,शरम न आवे है,
यौवन के जोर में न सूझत है तोहि एरी, देवर को हाथ गहे, कान्हर बतावे है,
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