पूछौ क्यों उमंगै सिन्धु पूरण मयंक देखि, पूछौ तौ कुमोदनी बिलोकि भानु क्यों लजै,
पूछौ तौ पपीहा क्यों न पीवै नीर स्वाती बिन,पूछौ तौ मलिँदै क्यों न चाहै चम्पकी रजै,
रसिकबिहारी चित्त रीत है अलक्ष्य यह, पूछौ बहु ठौर तौ संका हिये ते भजै,
पूछौ तौ पतिंगा क्यों जरे है धाय दीपक में, पूछौ बारि के बिहीन मीन जीव क्यों तजै,
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