Kavita Ghat (कविता-घट)
Tuesday, January 11, 2011
रैन कि
चैन
बितायो
कहू
, कि
बिना
गुनमॉल
लसे
यह
पंती
,
नींद
भरे
दरसात
दुओ
दृग
,
देखत
राज
रही
अरुण
न्ती,
जावक
अंजन
रेख
दिये
, विश्वनाथ
कहें
वै
तिया
गुनवंती
,
साँची
बतावो छिपाओ न
मो
सन
,
पायो
कहाँ यह
सारी
बसंती
,
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