केते भये सगर सुत, यादव सुत केते भये, जातहूँ न जाने ज्यो तरैया परभात की,
बलि, वेणु, मान्धाता, दधीच, प्रहलाद मैं, कहाँ लौ कथा कहौं रावन जजाति की,
तेऊ न बचन पाये काल कौतुकी के हाथ,भाति भाति सेन रची,समर सूर घातकी,
चार चार दिन को चबाव सब कोइ करौ, अंत लौट जहियो, जैसे पातुर बरात की,
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