व्यथित तृषा ते अति आकुल मतंग भयो,करनि समेत गहि गैल वारि तट की,
करतै प्रवेश तटनी के गयो बीच धार, ऐचा खैची होन लगी जीत ग्राह के लपट की,
साथी जान पाथी कर कमल उठाय कह्यो,आओ बाल कृष्ण पूजा निर्बल निपट की,
है न सुधि तट की, न त्रास प्रतिभट की, सो दूर से बिलोकेउ फहरान पीतपट की,
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