मुकुट जटान को महान शोभनीय शीश, छाजत छटा है भाल चन्द्र छविकारी की,
छुटत फुहार गंगधार की अपार शुभ्र, मेटत त्रिताप जो मही के जीवधारी की,
अवधेश भुजन भुजंग, अंग अंग भस्म, भाषत बने न छवि मुंडमाल वारी की,
तीन लोक झांकी, ऐसी दूसरी न झांकी, जैसी झांकी हम झांकी, बांकी शम्भु त्रिपुरारी की,
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