विष्णु को सार, श्रंगार महेश को, सागर को सुत औ लक्ष्मी को भाई,
देवन को धन, तारन को पति, लोगन को है सदा सुखदाई,
ताहू पे आन बिपत्ति परी, जब पूर्ण कला नभ में छहराई,
भीषम राहु ग्रसेउ जबही, तब सन्मुख कोई न होत सहाई,
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