जिय पै जो होय अधिकार तो बिचार कीजै, लोक, लाज,भलो,बुरो,भले निरधारिये,
नैन, श्रौन, कर, पग, सबै परबस भये, उतै चलि जात, इन्हे कैसे कै सम्भारिये,
हरिचंद भई सब भांति सो पराइ हम, इनहि ज्ञान कहि, कहो कैसे कै निबाहिये,
मन में बसे जो ताही दीजिये बिसार,मन आपै बसे जामै,ताहि कैसे कै बिसारिये,
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