द्विज श्याम तू है अब दया की समुद्र,
मेरे छिद्र है अनेक भरे छुद्र आचरन में,
निशिदिन वासना उपासना में लागो रहेउ,
पागो रहेउ पर धन , दार के हरन में,
ऐसे पाप साधी अपराधी को न ठौर कहूँ,
मातु बिन कौन राखे सुत को चरन में,
दूर करु बाधा हरु बिपति अगाधा,
मोहे सब सुख साधा राधा राख ले सरन में,
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