Kavita Ghat (कविता-घट)
Tuesday, January 11, 2011
आजु को
हा
ल सुनो
सजनी
, मड़ेये
प्रगटेउ
एक
कौतुक
भा
री
,
जे
वन
ला
गी
बरात
जबे
,
रघुनाथ
लखेउ
मिथलेश
अटारी
,
राम
को
रूप
बि
लोकत
ही
,
मति
विभ्रम
होई
गई
गावनवारी
,
भूल
गई अवधेश
को
नाम
,
देंन लगी
मिथलेशहि
गारी
,
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