भोर ही न्योति गयी थी तुम्हे, वह गोकुल ग्राम की ग्वालिन गोरी,
आधिक राति लौ बेनी प्रवीन, कहाँ धिग राखि करी बर जोरी,
आवे हंसी मोहे देखत लालन, भाल में दीने माहवार घोरी,
येते बड़े बृजमंडल में, तुम्हे मांगे मिली नहि रंचक रोरी,
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