छलबल कै थाक्यो अनेक गजराज भारी, भयो बलहीन जब नेकु न छुड़ा गयो,
कहिबे को भयो करुना की कवि कारे कहें, रही नेकु नाक और सबही डुबा गयो,
पंकज से पायन, पयादे, पलंग छाडि, पावरी बिसारि प्रभु ऐसी परि पा गयो,
हाथी के ह्रदय माहि आधौ हरि नाम सोय गरे जौ ना आयो गरुणेश तौ लौ आ गयो,
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