Monday, January 10, 2011

सोहे बाम भाग में गिरीश की कुमारी प्यारी, बिहरत न्यारी गंग शीश पे स्वछंद है,

ब्याल      कपाल   बिशाल  गल   डाले  माल ,  करत  निहाल  हाल काटि  भव फंद है,

अवधेश   लेशहू    न    रहत   क्लेश  शेष,   ध्यावत  महेश  जो  हमेशा  सुख  कंद  है,

निपट     उदासी,    अविनासी,    गुणराशी,    परमप्रकाशी,   भाल    राजे    चारू   चन्द्र   है,

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