सोहे बाम भाग में गिरीश की कुमारी प्यारी, बिहरत न्यारी गंग शीश पे स्वछंद है,
ब्याल औ कपाल बिशाल गल डाले माल , करत निहाल हाल काटि भव फंद है,
अवधेश लेशहू न रहत क्लेश शेष, ध्यावत महेश जो हमेशा सुख कंद है,
निपट उदासी, अविनासी, गुणराशी, परमप्रकाशी, भाल राजे चारू चन्द्र है,
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