रमत रमा के संग आनंद उमंग भरे, अंग पै थहर मतंग अवराधे पै,
कहै पद्माकर बदन दुति औरे भई, बूंदे छई छलक दृगन नेह नाधे पै,
धाये उठ बारन उबारन मे न लाई रंज, चंचलाहू चकित हुई रही बेग साधे पै,
आवत बितुंड की पुकार मिली आधे पै,लौटत मिलेव पच्छिराज मग आधे पै,
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