कितो सुरराज ब्रजमंडल माहि कोप कीनेहु, तहां गयो धाय घोर घहरानेउ है,
की कहु गोपिन के चीर हरेउ दीनानाथ,कितो मातु जसुदा से दधि को बिरझानेउ है,
की कहु भगतन पे भीर परी, तहां गयो धाय, किधौ मोहि पे रिसानेउ है,
बरनत कवि कालीचरन, द्रौपदी पुकार कहे, खगपति बुड़ानेव कि सुदर्शन हेरानेउ है,
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