Kavita Ghat (कविता-घट)
Tuesday, January 11, 2011
दुईज
को
चाँद
चढ़ेव
जबही
,
अपने
घर
से
निकसी
अभिलाषी
,
कोऊ
कहै
यह
काहु
की
सुन्दर
,
कोऊ
कहै
यह
काहू
की
दासी
,
इतने
में
मिले
नन्द नंदन
जू
,
खेलत
गेंद
मचावत
हासी
,
घूँघट
के
पट
टूट
गए
,
तब
दुईज
की
होई
गई
पूरनमासी
,
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