पूत सपूत जनेउ जसुदा, इतना सुनके वसुधा सब दौरी,
देवन को आनंद भयो, सुनि धावत गावत मंगन गौरी,
नन्द कछू इतनो जो दियो, घनश्याम कुबेरहू की मति बौरी,
मोहि देखत ब्रजहि लुटाय दियो,न बची बछिया,छछिया न पिछौरी,
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